विनय तिवारी


एक बार, बस एक बार
प्लीज़, खिड़की खोलने दो
बहुत दिन हो गए,
मन नहीं लग रहा है
सच कहता हूँ जानेमन
तुम्हारी कसम, दिल घबरा रहा है
बस एक बार
मौसम का क्या हाल है
देखने को जी चाह रहा है
भृकुटी ताने श्रीमती जी बोलीं
गालियों की पोटली खोलीं
मैं जानती थी कमीने
कुछ तो जरूर लफड़ा है
मौसम का,
पति से क्यों रोज झगड़ा है
मौसम पति से लड़कर मायके
चली गयी है
अभी अभी खबर आई है कि पुलिस लेकर आ रही है
अब वो अपनी मर्जी से जीयेगी
जिससे प्यार करती है
उसी से रहेगी
इसीलिए खिड़की खोलने के लिए गिड़गिड़ा रहा है
ताज़ा हवा के बहाने
नज़र वहां गड़ा रहा है
कान खोलकर सुन लो
अगर मौसम के मामले में तुम्हारा नाम आएगा,
दुनिया में मुझसे बुरा और कोई नजर नहीं आएगा
मैं तुम्हारी आशिक़ी का सारा भूत उतार दूंगी
तुम्हारे साथ मौसम को भी धरती में गाड़ दूंगी
पत्नी के रणचंडी रूप को देख घबरा गया
एसी रूम में भी पसीना आ गया
हाथ जोड़कर कहा
सुन लो प्राण की प्यारी
तेरी कसम
किसी पड़ोसन से नहीं है मुझको यारी

जान बचे तो लाखों पाये,
जानम, बंद रहने दो खिड़की
एक तो कोरोना का कहर
ऊपर से यह तेरी ज़हर भरी झिड़की


लेखक रोआम, कतरास, धनबाद के
रहनेवाले हैं. इनसे मोबाइल नंबर-9334345097 पर संपर्क किया जा सकता है.

By RK

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