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लोकसभा के बाद राज्यसभा में कई घंटे तक हुई बहस के बाद वक्फ संशोधन बिल पास हो गया. गुरुवार को पूरे दिन NDA और विपक्ष के सांसदों के बीच जोरदार और लंबी बहस के बाद वक्फ संशोधन बिल गुरुवार को देर रात राज्यसभा में भी पारित हो गया जहां पक्ष को 128 सांसदों ने वोट दिया और वही विपक्ष को 95 वोट मैं ही संतोष करना पड़ा। एक दिन पहले ही बुधवार देर रात को वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पास हुआ था.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचे ओवैसी

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने वक़्फ़ संशोधन बिल के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

दिनांक: 4 अप्रैल 2025
स्थान: नई दिल्ली

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में वक़्फ़ अधिनियम में किए गए संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। ओवैसी ने अपनी याचिका में इन संशोधनों को असंवैधानिक बताते हुए कोर्ट से इन्हें रद्द करने की मांग की है।

याचिका की मुख्य बातें:

ओवैसी की याचिका में यह तर्क दिया गया है कि वक़्फ़ अधिनियम, 1995 में वर्ष 2013 और 2014 में किए गए संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन करते हैं।

उन्होंने कहा कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों को अन्य धार्मिक समुदायों की तुलना में अलग और भेदभावपूर्ण तरीके से नियंत्रित करता है, जो समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) के खिलाफ है।

धार्मिक स्वतंत्रता पर दखल:

याचिका में यह भी कहा गया है कि यह अधिनियम धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और धार्मिक संस्थाओं को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने के अधिकार (अनुच्छेद 26) का भी उल्लंघन करता है। ओवैसी के अनुसार, वक़्फ़ संपत्तियाँ पूरी तरह से धार्मिक उद्देश्य के लिए दी जाती हैं और सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है

वक़्फ़ बोर्ड को अत्यधिक शक्तियाँ?

ओवैसी ने यह सवाल भी उठाया है कि वक़्फ़ अधिनियम के तहत वक़्फ़ बोर्ड को इतनी शक्तियाँ दे दी गई हैं कि वे किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर सकते हैं, जिससे निजी संपत्ति के मालिकों के अधिकारों का हनन हो सकता है।

सरकार का पक्ष:

सरकार का पक्ष अब तक सामने नहीं आया है, लेकिन पहले यह कहा गया है कि इन संशोधनों का उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।

निष्कर्ष:

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण याचिका पर क्या रुख अपनाता है। क्या धार्मिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और सरकार की निगरानी के बीच कोई संतुलन स्थापित किया जा सकेगा — यह भविष्य की न्यायिक प्रक्रिया पर निर्भर करेगा।

आपको बताते चले कि वक़्फ़ संशोधन बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हो चुका है. इस बिल को अभी राष्ट्रपति की तरफ से मंज़ूरी मिलना बाकी है.

By S GUPTA

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