सुकमा में शांति की ओर कदम: 33 नक्सलियों ने छोड़ा हथियार, पुलिस के सामने आत्मसमर्पण

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में शुक्रवार को नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। कुल 33 नक्सलियों ने राज्य पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इन आत्मसमर्पण करने वालों में से 17 नक्सलियों पर कुल 49 लाख रुपये का इनाम घोषित था, जो इस घटना को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

सुकमा के एसपी किरण चव्हाण ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वालों में 9 महिलाएं भी शामिल हैं। इनमें से कई नक्सली पीएलजीए (People’s Liberation Guerrilla Army) जैसे खतरनाक माओवादी संगठनों के सक्रिय सदस्य रहे हैं।


‘खोखली और अमानवीय विचारधारा से मोहभंग’

आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने बताया कि वे माओवादी विचारधारा की हिंसात्मक और अमानवीय प्रकृति से अब निराश हो चुके थे। वर्षों से आदिवासी इलाकों में आतंक फैलाने और निर्दोषों पर अत्याचार करने के बाद अब उन्हें एहसास हुआ कि यह रास्ता विनाश का है।

उन्होंने सरकार की ‘नियाद नेल्लनार’ (आपका अच्छा गांव) योजना और नई आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति को इस निर्णय का प्रेरणास्रोत बताया। यह योजना दूरदराज के इलाकों में विकास और विश्वास की बहाली पर आधारित है।


इनामी नक्सली भी आए मुख्यधारा में

इस आत्मसमर्पण की सबसे अहम बात यह रही कि कई वांछित और इनामी नक्सलियों ने भी हथियार डाले। इनमें प्रमुख नाम हैं:

  • मुचाकी जोगा (33) – पीएलजीए कंपनी नंबर 1 के डिप्टी कमांडर – इनाम ₹8 लाख
  • मुचाकी जोगी (28) – उनकी पत्नी और दस्ते की सदस्य – इनाम ₹8 लाख
  • किकिद देवे (30) – माओवादी एरिया कमेटी सदस्य – इनाम ₹5 लाख
  • मनोज उर्फ दुधी बुधरा (28) – माओवादी एरिया कमेटी सदस्य – इनाम ₹5 लाख

शांति और विकास की ओर एक नई शुरुआत

यह आत्मसमर्पण न सिर्फ एक बड़ी सुरक्षा उपलब्धि है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि सरकार की नीतियां और जनता में जागरूकता रंग ला रही है। इससे न सिर्फ क्षेत्र में शांति बहाल होगी बल्कि युवाओं को भी यह संदेश मिलेगा कि हिंसा का रास्ता किसी समाधान की ओर नहीं ले जाता।

निष्कर्ष:

सुकमा में 33 नक्सलियों का आत्मसमर्पण एक बड़ी उपलब्धि है, जो यह दर्शाता है कि हिंसा और आतंक का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटना संभव है। यह कदम माओवादी विचारधारा से मोहभंग और सरकार की विकासपरक योजनाओं की सफलता का प्रमाण है। ‘नियाद नेल्लनार’ जैसी पहलें न केवल दूरस्थ क्षेत्रों में भरोसे का वातावरण बना रही हैं, बल्कि वर्षों से आतंक के साए में जी रहे ग्रामीणों को एक नई दिशा भी दे रही हैं। ऐसे आत्मसमर्पण शांति, स्थिरता और समावेशी विकास की ओर एक निर्णायक कदम हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में और भी नक्सली इस राह पर चलकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का हिस्सा बनेंगे।

By S GUPTA

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