रिपोर्ट | Khabar17.com विशेष
म्यांमार में आधी रात को फिर धरती कांपी। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक, 24 मार्च को आए इस भूकंप की तीव्रता 4.0 दर्ज की गई और इसका केंद्र जमीन से 40 किलोमीटर नीचे था। लोग नींद में थे, लेकिन जब ज़मीन हिलने लगी तो दहशत में घरों से बाहर भागे। यह एक सामान्य झटका नहीं था — यह एक संकेत था, चेतावनी थी — एक धरती की पुकार, जो कह रही है कि “अब भी समय है, संभल जाओ।”
लगातार झटकों ने खोली आंखें
यह भूकंप उस तबाही की अगली कड़ी है जिसने मार्च की शुरुआत में म्यांमार को झकझोर दिया था। 7.7 और 6.4 तीव्रता के दो जबरदस्त भूकंपों ने 100 से ज्यादा लोगों की जान ले ली, हजारों को बेघर कर दिया और सैकड़ों इमारतों को ध्वस्त कर दिया।
आज की यह घटना भले ही तुलनात्मक रूप से हल्की रही, लेकिन यह याद दिलाती है कि म्यांमार अभी भी सीस्मिक एक्टिव ज़ोन के केंद्र में है और एक और बड़ी आपदा कभी भी दस्तक दे सकती है।
भूकंप क्यों आ रहे हैं? जानिए वैज्ञानिक कारण
भूकंप पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराने, खिसकने या फटने के कारण आते हैं। म्यांमार “इंडो-बर्मा प्लेट” और “यूरेशियन प्लेट” के जंक्शन पर स्थित है, जहां ज़बरदस्त तनाव लगातार जमा होता रहता है। जैसे ही यह तनाव किसी सीमा से पार होता है, धरती कंपन करने लगती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सागाइंग फॉल्ट जैसे एक्टिव फॉल्ट लाइंस म्यांमार की 46% आबादी को खतरे में डालते हैं। यही नहीं, म्यांमार की समुद्र के पास स्थिति इसे संभावित सुनामी का भी शिकार बना सकती है।
प्राकृतिक आपदा या मानवजनित संकट?
विज्ञान के अनुसार भूकंप प्राकृतिक घटनाएं हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या हम इंसानों ने प्रकृति के साथ इतना हस्तक्षेप कर लिया है कि अब यह हमें चेतावनी दे रही है? पेड़ काटना, नदियों को मोड़ना, शहरों को ज़बरदस्ती फैलाना और खनिजों की अत्यधिक खुदाई — ये सब धरती के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम यूं ही प्रकृति के खिलाफ चलते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब मानवता इतिहास के पन्नों में दर्ज एक बीते युग की कहानी बनकर रह जाएगी।
WHO की चेतावनी और भारत की मदद
विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही कह चुका है कि दक्षिण-पूर्व एशिया, खासकर म्यांमार, गंभीर स्वास्थ्य खतरों की चपेट में है। जलजनित बीमारियां, टीबी और HIV जैसी बीमारियों के बीच बार-बार आ रहे भूकंप लोगों की हालत और खराब कर रहे हैं।
भारत ने ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ के तहत म्यांमार में राहत अभियान चलाया है। यांगून में भारतीय नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है और स्थानीय आबादी को भी दवाएं व भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
क्या विनाश की ओर बढ़ रहा है मानव समाज?
बार-बार आने वाली आपदाएं महज़ प्राकृतिक घटनाएं नहीं हैं — ये इंसान के लालच, लापरवाही और प्रकृति से छेड़छाड़ की कीमत हैं। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में वृद्धि और धरती के सीने में हो रहे घाव मिलकर एक ऐसा तूफान बना रहे हैं, जो कभी भी पूरी मानव सभ्यता को निगल सकता है।
“यदि हमने अभी भी प्रकृति को न समझा, उसके साथ तालमेल नहीं बिठाया, तो वो दिन दूर नहीं जब हम खुद ही अपने इतिहास के अंतिम पृष्ठ पर अंतिम वाक्य लिख रहे होंगे।”
निष्कर्ष: चेतावनी या अंतिम अवसर?
म्यांमार की धरती की ये कंपन शायद आखिरी चेतावनी है। यह वक्त है अपने विकास के मॉडल की समीक्षा करने का, अपनी जीवनशैली को बदलने का, और सबसे जरूरी — प्रकृति के साथ फिर से दोस्ती करने का।
अगर आज नहीं सुधरे, तो कल इतिहास हमें केवल एक “चेतावनी को नजरअंदाज़ करने वाले” प्रजाति के रूप में याद रखेगा।