बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। चुनाव आयोग ने राज्य के 13 ज़िलों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वीवीपैट (VVPAT) की प्रथम स्तरीय जांच (First Level Checking – FLC) की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कार्य 30 जून तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
🔍 कैसे हो रही है जांच?
इस प्रक्रिया में 200 से अधिक तकनीकी इंजीनियर और चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त अधिकारी शामिल हैं। सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मशीनों की जांच की जा रही है। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए पूरी प्रक्रिया की वेबकास्टिंग भी की जा रही है।
🧾 पुराने डेटा का किया जा रहा है सफाया
FLC के दौरान सबसे पहले सभी ईवीएम से पुराने चुनावों से जुड़ी जानकारी हटा दी जाती है। मशीनों से पहले की स्लिप, बैलेट पेपर, ग्रीन टैग और स्टिकर को निकाल दिया जाता है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि संबंधित मशीन किसी कोर्ट केस में शामिल न हो।
यदि किसी सीट को लेकर मामला न्यायालय में लंबित है, तो उसकी पुष्टि के बाद ही मशीनों की जांच आगे बढ़ाई जाती है।
⚙️ क्या होती है प्री-FLC जांच?
प्री-FLC में मशीन के आंतरिक हिस्सों की जांच होती है – जैसे सर्किट, बैटरी और सभी तकनीकी फंक्शन्स। वीवीपैट मशीन से भी पुराने स्लिप हटाकर डमी पेपर डाला जाता है, ताकि वो दोबारा प्रयोग के लिए तैयार हो सके।
✅ कैसे सुनिश्चित होता है मशीन का दुरुस्त होना?
FLC के आखिरी चरण में ईवीएम की विश्वसनीयता जांची जाती है। इसके लिए सभी मशीनों में से 5% मशीनों को रैंडम तरीके से चुना जाता है और उनमें वोट डालकर परीक्षण किया जाता है।
- 1% मशीनों में 1200 वोट डालकर देखा जाता है।
- 2% मशीनों में 1000 वोट और
- बाकी 2% मशीनों में 500 वोट डालकर जांच की जाती है।
इसके अलावा, एक कंट्रोल यूनिट में चार बैलेट यूनिट जोड़कर वोटिंग की जाती है ताकि मशीन की अधिकतम क्षमता का भी परीक्षण हो सके।
📋 पारदर्शिता बनी रहे इसके लिए…
जांच पूरी होने के बाद संबंधित मशीनों की सूची राजनीतिक दलों को सौंप दी जाती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी तरह की गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न बचे।