नयी दिल्ली
देश में कोविड-19 महामारी के कारण 41 लाख युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। इसमें निर्माण और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी सर्वाधिक प्रभावित हुए। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की संयुक्त रिपोर्ट में यह कहा गया है। ‘एशिया और प्रशांत क्षेत्र में कोविड-19 युवा रोजगार संकट से निपटना’ शीर्षक से आईएलओ-एडीबी की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारत में 41 लाख युवाओं के रोजगार जाने का अनुमान है। सात प्रमुख क्षेत्रों में से निर्माण और कृषि क्षेत्र में सर्वाधिक लोगों के रोजगार गये हैं।” इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण युवाओं के लिये रोजगार की संभावनाओं को भी कड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के अनुसार संकट के कारण तत्काल 15 से 24 साल के युवा 25 और उसे अधिक उम्र के लोगों के मुकाबले ज्यादा प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं आर्थिक और सामाजिक लागत के हिसाब से जोखिम दीर्घकालिक और व्यापक है। आईएलओ-एडीबी रिपोर्ट ‘युवा और कोविड-19 पर वैश्विक सर्वे’ के क्षेत्रीय आकलन पर आधारित है। अनुमान विभिन्न देशों में उपलब्ध बेरोजगारी के आंकड़े के आधार लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में महामारी के दौरान कंपनी के स्तर पर दो तिहाई प्रशिक्षण (एप्रेन्टिसशिप) पर असर पड़ा। वहीं तीन चौथई ‘इंटर्नशिप’ पूरी तरह से बाधित हुए हैं। रिपोर्ट में सरकारों से युवाओं के लिये रोजगार सृजित करने, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पटरी पर लाने और 66 करोड़ युवा आबादी के भविष्य को लेकर निराशा को कम करने के लिये तत्काल, बड़े पैमाने पर लक्षित कदम उठाने का आह्वान किया गया है। कोविड-19 संकट से पहले ही एशिया और प्रशांत क्षेत्र में युवाओं के समक्ष रोजगार को लेकर चुनौतियां थी। इसके कारण बेरोजगारी दर ऊंची थी और बड़ी संख्या में युवा स्कूल तथा काम दोनों से बाहर थे। वर्ष 2019 में क्षेत्रीय युवा बेरोजगारी दर 13.8 प्रतिशत थी। वहीं वयस्कों (25 साल और उससे अधिक उम्र) में यह 3 प्रतिशत थी। 16 करोड़ से अधिक युवा (आबादी का 24 प्रतिात) न तो रोजगार में थे और न ही शिक्षा या प्रशिक्षण में। रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र में हर पांच युवा कामगारों में चार असंगठित क्षेत्र में है और चार युवा कर्मचारियों में एक गरीबी में रहने को मजबूर है। रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका और आईएलओ क्षेत्रीय आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषण इकाई प्रमुख सारा एल्डर ने कहा, ‘‘कोविड-19 संकट के बाद से जो चुनौतियां युवाओं के लिये थी, वह और बढ़ गयी हैं। अगर इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, एक ‘लॉकडाउन पीढ़ी’ सृजित होने का खतरा है, जिसे इस संकट का भार कई साल तक महसूस करना पड़ सकता है।”