विनय तिवारी
तोर दंगरल साध
कि एगो फ्लैट किनब,
संगमरमर टाइल्स लागल
सहरें,
हामर जउरतेक हिंछा जे हामें
बनवब एगो माटिक घार!
जे चुवत नांय बइरसाइं
बंचवे पारत जे पुसेक सुलसुली से।
तोर मोने खुभे लालसा
कि कीनब एगो
चमकोवा चाइरचकवा
आर
सानेक संगें घुरब आपुस-कुटुम घारें,
हामें रोजे भाभहों कि कहिया
बनवे पारब एगो ग़ोरु गाड़ी
की धानेक बीड़ा नाय आने हवत
मुडेक ऊपरें,
गाय-गोरु छेगरी-पठरू से तोर
नाय कोन्हों लसतगा,
बाप घार से आइल हें
एगो अनमोल रतन- टामी
जकरा कुकुर कहलें
भइ जाहे घरें महाभारत,
सइटे लयकुन तोयं घूरें,
साया साड़ी लुगा फाटा तोयं
कहियो नाय पिधलें
हामर मुड़ हेट करले घार गावें
पिन्ध सूट सलवारें,
विनय तिवारी माथा धइर
भाभे खेतेक आइरें
की दोस करलहलों विधाता,
की इ रकम जेनी लिखल हाला
हामर कपारें।।
लेखक रोवाम, कतरासगढ़, धनबाद, झारखंड के रहनेवाले हैं. इनसे मोबाइल नंबर- 9334345097 पर संपर्क किया जा सकता है.