पश्चिम बंगाल में सत्ता की बागडोर लंबे समय से ममता बनर्जी के हाथों में है, लेकिन सवाल ये उठता है — क्या यह सरकार वास्तव में पूरे राज्य की है या सिर्फ एक वर्ग विशेष की? बंगाल में घटती घटनाओं को देखने के बाद एक आम हिंदू का यह सोचना लाजमी है कि आज राज्य में उसका कोई संरक्षक नहीं बचा है।
तुष्टिकरण की राजनीति बनाम न्याय की नीति
ममता सरकार पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुसलमानों के वोट बैंक को साधने के लिए हर उस हद तक जाती है, जहाँ न्याय और संविधान की सीमाएं टूट जाती हैं।
सरकारी योजनाओं में नाम, प्राथमिकता और सुविधाओं में भेदभाव एक आम बात हो चुकी है। “इमाम भत्ता” की योजना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें मस्जिदों के इमामों को ₹2500 से अधिक मासिक भत्ता दिया गया, लेकिन मंदिरों के पुजारियों को लंबे समय तक इससे वंचित रखा गया।
रामनवमी और दुर्गा विसर्जन पर प्रतिबंध, लेकिन मुहर्रम को छूट?
2016 से लेकर अब तक ममता सरकार ने जिस प्रकार हिंदू त्योहारों पर बार-बार प्रतिबंध लगाए, वह न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ था, बल्कि इस बात का भी संकेत था कि सरकार किसके पक्ष में खड़ी है। दुर्गा विसर्जन को रोकना ताकि वह मुहर्रम से न टकराए, यह एक ऐसा निर्णय था जिसने करोड़ों हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंचाई।
रामनवमी पर जुलूस निकालने की इजाजत नहीं, लेकिन अन्य समुदायों के मजहबी कार्यक्रमों में पूरी सरकारी मशीनरी मुस्तैद — यह दोहरा रवैया अब बंगाल के हर हिंदू को महसूस हो रहा है।
हिंदुओं पर हिंसा: शासन मौन और पुलिस पक्षपाती
बंगाल में कई जिलों से लगातार खबरें आती रही हैं कि जब भी कोई सांप्रदायिक तनाव होता है, प्रशासन और पुलिस हिंदुओं को ही दोषी ठहराने में जुट जाते हैं।
बीती रामनवमी (2023 और 2024) पर हावड़ा, हुगली, रिसड़ा, मालदा और उत्तर दिनाजपुर जैसे इलाकों में हिंदुओं की दुकानों को जलाया गया, घरों में आग लगाई गई, मंदिरों में तोड़फोड़ की गई — लेकिन गिरफ्तार वही हुए जो पीड़ित थे।
शांतिपूर्ण जुलूस निकालने वाले हिंदुओं पर धारा 144, लेकिन हथियारों के साथ जुलूस निकालने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं — यह सरकार की vote bank politics की पराकाष्ठा है।
क्या हिंदू बंगाल में दूसरे दर्जे का नागरिक बन गया है?
आज बंगाल का बहुसंख्यक समाज, जो कभी इस राज्य की आत्मा हुआ करता था, खुद को असहाय महसूस कर रहा है।
क्या यह वही बंगाल है जिसने स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महापुरुषों को जन्म दिया?
आज उसी धरती पर हिंदू बच्चों के हाथों से भगवा झंडा छीन लिया जाता है, माता-पिता को धमकी मिलती है, और सरकार चुप रहती है।
निष्कर्ष: बंगाल को चाहिए न्याय, ना कि ‘तुष्टिकरण का शासन’
ममता सरकार का रवैया अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि एक संवैधानिक संकट बन चुका है। सरकार का काम होता है न्याय देना, न कि सिर्फ एक वर्ग को खुश करने के लिए बाकी समाज की बलि चढ़ा देना।
यदि यही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब बंगाल में हिंदू अपने ही घर से पलायन करने पर मजबूर होगा।

(यह रिपोर्ट पूरी तरह मौलिक है और किसी भी तरह के साम्प्रदायिक तनाव को भड़काने का उद्देश्य नहीं, बल्कि पीड़ितों की सच्चाई को सामने लाना ही इसका मकसद है।)