🟡 झरिया, झारखंड: कोयले की आग में जलता शहर

लेखक: राहुल कुमार
स्थान: धनबाद, झारखंड

इतिहास:

  • कोयला खनन की शुरुआत: झरिया में कोयला खनन 1894 में शुरू हुआ और 1925 से इसमें तीव्रता आई।
  • आग की शुरुआत: पहली बार 1916 में भूमिगत आग की सूचना मिली थी। 1930 में सेठ खोरा रामजी की खदानों में आग के कारण बड़े पैमाने पर धंसाव हुआ, जिससे उनका घर भी प्रभावित हुआ।

इस लेख को एक कहानी,भावनात्मक टोन में रूपांतरित कर रहा हूं ताकि आपके मन में झरिया की त्रासदी की एक जीवंत और दिल दहला देने वाली छवि अंकित हो।

कहानी का नाम: “धधकती ज़मीन: झरिया की राख में दबे सपने”

भूमिका:

एक समय की बात है, झारखंड की धरती के नीचे सोने से भी कीमती एक काली दौलत छिपी थी — कोयला। लोग कहते थे, इस धरती को ईश्वर ने कोयले से नवाजा है। पर किसी को क्या पता था कि यही दौलत एक दिन इस धरती को नर्क बना देगी।


कहानी की शुरुआत:

1894 में जब पहली बार झरिया की धरती फाड़ी गई, तो कोयले की कालिमा से झरिया की किस्मत चमकी। मजदूरों की एक पूरी पीढ़ी – रामू, फुलवा, और जानकी जैसे हजारों लोग – अपना सब कुछ छोड़कर कोयले की खदानों में पसीना बहाने लगे। पर हर हथौड़े की चोट के साथ, ज़मीन के अंदर एक असुर जागता जा रहा था।


आग की पहली सिसकी:

1916 की एक ठंडी रात, जानकी की झोपड़ी के पास की ज़मीन अचानक से कांप उठी। कोई समझ नहीं पाया कि यह धरती क्यों जल रही है। धीरे-धीरे आग ने रेंगना शुरू किया – पहले एक खदान, फिर दूसरी… और फिर पूरा इलाका।


आग का राक्षस:

ये कोई साधारण आग नहीं थी। यह आग सोती नहीं थी, थमती नहीं थी। यह धरती के गर्भ से उठती थी, धुआं बनकर सांसों में घुसती थी। बच्चे खांसते, बूढ़े दम तोड़ते, और सरकारें फाइलें पलटती रहतीं।


डर और बेबसी:

रामू का पोता – छोटू – कभी स्कूल नहीं गया। उसका स्कूल जल गया था। उसकी मां हर रात दुआ करती कि उनका घर अगली दरार में न समा जाए। लेकिन एक दिन – दरारें दरवाज़े तक आ पहुंचीं।


पुनर्वास या विस्थापन?

सरकार ने कहा – “बेलगड़िया चलो!” लेकिन वहां पहुंचकर लोगों को एहसास हुआ कि उन्होंने कोयले की आग से निकलकर बेरोजगारी, गंदगी और भुखमरी की आग में कदम रख दिया है।


सवाल आज भी ज़िंदा हैं:

  • क्यों 100 साल बाद भी आग नहीं बुझी?
  • क्यों लाखों खर्च होने के बाद भी लोग उसी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं?
  • और सबसे बड़ा सवाल — झरिया के बच्चे कब बचपन देखेंगे?

परिचय:
झरिया, झारखंड का एक प्रमुख कोयला क्षेत्र, पिछले एक सदी से अधिक समय से भूमिगत कोयला आग की चपेट में है। यह आग न केवल पर्यावरणीय संकट का कारण बनी है, बल्कि स्थानीय निवासियों के जीवन को भी प्रभावित कर रही है।

झरिया, झारखंड में कोयला खनन की शुरुआत एक ऐतिहासिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा रही है, जिसकी जड़ें 19वीं सदी के ब्रिटिश काल में मिलती हैं। नीचे इस पूरी प्रक्रिया को विस्तृत, क्रमबद्ध और मौलिक रूप में बताया गया है:

“झरिया की जलती धरती: 100 साल से धधकती कोयले की आग, उजड़ते घर और गुम होती ज़िंदगियाँ – एक अंतहीन त्रासदी की पूरी कहानी”

भूमिका:

झारखंड राज्य के धनबाद जिले में स्थित झरिया कोयलांचल भारत के ऊर्जा मानचित्र पर एक प्रमुख केंद्र है, लेकिन यह क्षेत्र एक सदी से अधिक समय से एक भयावह आपदा की गिरफ्त में है — भूमिगत कोयला आग। झरिया की आग अब सिर्फ एक भूगर्भीय घटना नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवीय त्रासदी में बदल चुकी है। यह लेख एक पत्रकारिता दस्तावेज़ के रूप में उस सतह के नीचे झांकता है, जहाँ इतिहास राख बनकर सुलग रहा है।


झरिया में कोयला खनन की शुरुआत:

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

झरिया में कोयले की पहली परतें 1894 में खोजी गईं, जब ब्रिटिश व्यापारियों ने यहाँ खनन कार्य शुरू किया। यह कोयला उच्च गुणवत्ता का कोकिंग कोल था, जो इस्पात उद्योग में अत्यंत आवश्यक है। पहले-पहल खनन ग्रामीणों के लिए आजीविका का साधन बना, लेकिन जल्द ही यह क्षेत्र पूंजीपतियों और ठेकेदारों का शोषण क्षेत्र बन गया।

🛠️ झरिया में कोयला खनन की शुरुआत: कब, किसने और कैसे

🔹 1. प्राकृतिक खोज और शुरुआती संकेत (18वीं सदी के अंत तक)

  • झारखंड का झरिया क्षेत्र भूमिगत खनिज संपदा, विशेष रूप से कोकिंग कोल (Coking Coal) के लिए जाना जाता है।
  • यह कोयला इस्पात उद्योग में अत्यंत उपयोगी होता है, क्योंकि यह उच्च तापमान पर जलकर स्टील बनाने में प्रयोग होता है।

🔹 2. ब्रिटिश काल और औद्योगिक क्रांति (1800-1900)

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में भूगर्भीय सर्वेक्षण शुरू किया।
  • कोलकाता से करीब होने के कारण यहाँ से कोयले को बंगाल के औद्योगिक क्षेत्रों तक पहुँचाना आसान था।

महत्वपूर्ण घटनाएं:

  • 1850 के दशक: ब्रिटिश अधिकारियों और व्यापारियों ने पहली बार झरिया क्षेत्र में कोयले की मौजूदगी को चिन्हित किया।
  • 1890: ब्रिटिश व्यापारिक कंपनियों ने छोटे स्तर पर कोयला खनन शुरू किया।
  • 1894: झरिया में पहली बार व्यवस्थित भूमिगत कोयला खनन की शुरुआत हुई। यह साल झरिया कोयलांचल के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था।

🔹 3. भारतीय व्यापारियों का प्रवेश (1900-1930)

  • शुरुआती ब्रिटिश नियंत्रण के बाद, कई भारतीय व्यापारी और ठेकेदार इस क्षेत्र में आए।
  • सेठ खोरा रामजी (खोरी रामजी परिवार) — गुजरात के जैन समुदाय से संबंधित — झरिया के सबसे प्रसिद्ध कोयला व्यवसायी बने।
  • उनके साथ-साथ कई गुजराती, मारवाड़ी और बंगाली व्यवसायियों ने भी खनन कार्य शुरू किया।

⚒️ खनन का प्रारंभिक तरीका:

  • शुरुआती खनन भूमिगत सुरंगों (tunnel mining) के ज़रिए होता था।
  • कोई वैज्ञानिक खनन प्रणाली नहीं थी — “जहाँ कोयला मिला, वहीं खुदाई शुरू कर दी जाती थी।”
  • इससे भवनों की नींव के नीचे तक कोयला निकालना, खाली सुरंगें छोड़ देना और वेंटिलेशन न होना जैसी गंभीर समस्याएँ पैदा हुईं।

🔥 आग की शुरुआत: कैसे लगी कोयले में आग?

  • 1916 में पहली बार झरिया में कोयले में भूमिगत आग की जानकारी दर्ज की गई।
  • आग लगने के मुख्य कारण:
    • खुली और परित्यक्त खदानों में ऑक्सीजन प्रवेश करना।
    • खदानों में छोड़े गए कोयले के ढेर में आत्मदाह (spontaneous combustion) की प्रक्रिया।
    • वेंटिलेशन की कमी और गर्म गैसों का दबाव।

📊 खनन कंपनियाँ और प्रबंधन

कालखंडप्रमुख कंपनियाँभूमिका
1890-1947ब्रिटिश और भारतीय व्यापारीअराजक खनन, लाभ-केंद्रित दृष्टिकोण
1947-1973निजी भारतीय कंपनियाँआंशिक नियंत्रण, कोई पुनर्वास नहीं
1973भारत सरकार द्वारा खनन का राष्ट्रीयकरणCoal India Ltd. और BCCL (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) का गठन
1986 के बादBCCL द्वारा प्रबंधनसुरक्षा उपाय लागू, लेकिन आग पर नियंत्रण नहीं

📌 निष्कर्ष (अब तक के विवरण का सार)

  • झरिया कोलफील्ड की कोयले की कहानी औपनिवेशिक लूट, अनियंत्रित खनन और प्रशासनिक विफलताओं से भरी है।
  • 1894 में जिस खनन की शुरुआत हुई, उसने आज 2025 तक 100+ वर्षों में एक ऐसी त्रासदी को जन्म दिया है जो अब भी जल रही है — ज़मीन के नीचे, और लोगों के जीवन में भी।

प्रारंभिक घटनाएं:

  • 1894: खनन की शुरुआत ब्रिटिश व्यापारियों द्वारा
  • 1910-1920: भारतीय उद्योगपतियों का प्रवेश
  • 1930: पहली बार आग और भूधंसाव की घटनाएं दर्ज

खनन की प्रक्रिया और अनियंत्रित आग:

खनन के दो प्रमुख प्रकार:

  1. ओपन कास्ट माइनिंग (सतही खनन)
  2. अंडरग्राउंड माइनिंग (भूमिगत खनन)

झरिया में पहले भूमिगत खनन हुआ, लेकिन 1960 के बाद सतही खनन का चलन बढ़ा। दोनों प्रक्रियाएं बिना वैज्ञानिक तरीके के की गईं, जिससे कोयले के संपर्क में ऑक्सीजन आने लगी और धीरे-धीरे आग फैल गई।

आग फैलने के प्रमुख कारण:

  • अव्यवस्थित खनन और मलवा प्रबंधन
  • वेंटिलेशन की कमी
  • खदानों को छोड़ने के बाद उन्हें सील न करना
  • कोयले में प्राकृतिक गैसों का दबाव

आग की शुरुआत और फैलाव:

घटनाक्रम:

  • 1916: पहली बार भूमिगत आग रिपोर्ट हुई
  • 1930: ज़मीन धंसने से कई लोग बेघर हुए
  • 1965-1971: खदानों का राष्ट्रीयकरण, लेकिन आग बनी रही
  • 1986: BCCL की स्थापना, जिसने आग बुझाने की ज़िम्मेदारी ली

आज 450 से अधिक खदान क्षेत्रों में से करीब 67 क्षेत्र लगातार जल रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में धुआं, ज़हर और अनिश्चितता फैली हुई है।


झरिया की आग: एक अदृश्य राक्षस

तकनीकी जटिलताएं:

  • आग कई सौ मीटर गहराई में है
  • पानी डालने से विस्फोटक भाप बनती है
  • ऑक्सीजन का प्रवेश आग को और भड़काता है
  • गैसों के रिसाव से काम करना खतरनाक हो जाता है

प्रशासनिक विफलताएं:

  • हर दशक में योजनाएं बनीं, पर अमल नहीं
  • भ्रष्टाचार, कॉन्ट्रैक्ट हेरफेर और राजनीतिक लापरवाही
  • पुनर्वास योजनाओं में जनता की भागीदारी का अभाव

सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव:

स्वास्थ्य संबंधी आपदाएं:

  • टीबी, अस्थमा, त्वचा रोग आम हैं
  • बच्चों में कम उम्र में फेफड़ों की बीमारियाँ
  • महिलाओं में बांझपन और समयपूर्व प्रसव की समस्याएं

सामाजिक परतें:

  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
  • महिलाओं पर दोहरा बोझ — आग और गरीबी
  • नशाखोरी, मानसिक तनाव और पलायन

पुनर्वास की योजनाएं और असफलताएं:

JRDA (झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण):

  • 2004 में गठन
  • 80,000 परिवारों को हटाने का लक्ष्य
  • अब तक सिर्फ 3,000 परिवारों का पुनर्वास

बेलगड़िया टाउनशिप:

  • झरिया से 8 किमी दूर बसाई गई
  • मूलभूत सुविधाओं का भारी अभाव
  • सामाजिक बहिष्कार, बेरोजगारी और मानसिक अवसाद

सरकार और न्यायपालिका के प्रयास:

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर निर्देश
  • प्रधानमंत्री ग्राम पुनर्वास योजना (2009)
  • Master Plan (2010) – ₹7,112 करोड़ की लागत
  • धीमी गति से काम, योजना का निरंतर टलना

आग बुझाने के प्रयास और वैश्विक सुझाव:

अब तक के उपाय:

  • पानी और मिट्टी का छिड़काव
  • नाइट्रोजन और कार्बन डाईऑक्साइड इंजेक्शन
  • स्लरी फिलिंग और भूमिगत सीलिंग

विदेशी सलाह:

  • DMT जर्मनी: वैक्यूम और सीलिंग प्रणाली
  • अमेरिका की Penn State रिपोर्ट: आग से ग्रसित कोयले को पूरी तरह निकाल देना
  • जापान की कूलिंग तकनीक और BOREHOLE आधारित सेंसिंग सिस्टम

मीडिया और समाज की भूमिका:

  • मुख्यधारा मीडिया ने झरिया को भुला दिया
  • सोशल मीडिया पर आवाजें उठती हैं पर दब जाती हैं
  • स्थानीय पत्रकार, जैसे स्वर्गीय शंकरलाल यादव, जिन्होंने 40 वर्षों तक झरिया की आग को उठाया

कोयला उद्योग, नीति और पर्यावरण:

  • BCCL और CCL जैसे PSU लगातार खनन कर रहे हैं
  • कोई स्पष्ट योजना नहीं कि कितना कोयला निकालना शेष है
  • पर्यावरणीय प्रभाव: पेड़-पौधे नष्ट, जलस्तर गिरा
  • वनों की कटाई, तापमान वृद्धि और ज़मीन बंजर

झरिया की आग: एक भावनात्मक और मानवीय दृष्टिकोण:

रामू, फुलवा, जानकी — ये नाम नहीं, झरिया की पहचान हैं। उनकी आंखों में सिर्फ कोयला ही नहीं, धुआं, आँसू और सपने भी हैं। हर बच्चा यहां धुएं के साथ सांस लेना सीखता है, और हर मां अपने बेटे को झरिया छोड़ने की दुआ करती है। लेकिन छोड़ें कहाँ जाएँ? जब जड़ें जल रहीं हों, तो शाखाएं उड़ नहीं पातीं।


भविष्य की दिशा और संभावनाएं:

  • पारदर्शी और स्थानीय सहभागिता पर आधारित पुनर्वास
  • आग बुझाने के लिए अत्याधुनिक विदेशी तकनीक
  • स्वास्थ्य शिविर, स्कूल और रोजगार केंद्रों की स्थापना
  • प्राकृतिक पुनरुद्धार — वृक्षारोपण, भूमिगत जल संरक्षण
  • “Just Transition” मॉडल का उपयोग — जैसे जर्मनी ने किया

निष्कर्ष:

झरिया कोई सिर्फ कोयला क्षेत्र नहीं — यह एक प्राकृतिक चेतावनी, एक आग में जलती मानवता और एक शासन की असफलता का दर्पण है। इसे केवल पानी से नहीं, बल्कि ईमानदारी, तकनीक और मानवीय दृष्टिकोण से बुझाया जा सकता है। जब तक झरिया की आग बुझेगी नहीं, तब तक देश की ऊर्जा भले चलती रहे, लेकिन उसकी आत्मा राख में दबती रहेगी।

✍️ नम्र स्पष्टीकरण:

यह लेख Khabar17 News द्वारा पूरी तरह से शोध, रिकॉर्ड और लोकप्रचलित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। हमारा उद्देश्य केवल झरिया जैसे संकटग्रस्त क्षेत्र की सच्चाई को उजागर करना है, न कि किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना। यदि अनजाने में इस लेख की किसी बात से किसी को पीड़ा पहुंची हो, तो Khabar17 News परिवार की ओर से हम विनम्रतापूर्वक क्षमा प्रार्थी हैं।

हम यह भी मानते हैं कि हर समस्या का समाधान संवाद, सहानुभूति और मिल-जुलकर काम करने से ही संभव है। आशा है कि यह प्रयास बदलाव की दिशा में एक छोटा लेकिन सार्थक कदम बनेगा।

By S GUPTA

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