मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ (1719-1748) कौन थे?
- पूरा नाम: मोहम्मद शाह (जन्म नाम रोशन अख्तर)
- जन्म: 1702 ई.
- राज्याभिषेक: 1719 में 17 साल की उम्र में मुगल सम्राट बने।
- उपाधि ‘रंगीला’ क्यों?:
मोहम्मद शाह संगीत, नृत्य, शायरी, भोग-विलास और रंगीन जीवनशैली के शौकीन थे, इसलिए इतिहासकारों ने उन्हें ‘रंगीला’ कहा। - शासनकाल की स्थिति:
उनके समय में मुगल साम्राज्य बहुत कमजोर हो चुका था। प्रांतीय गवर्नर स्वतंत्र हो रहे थे और दरबार में भ्रष्टाचार चरम पर था। सैनिक व्यवस्था चरमरा गई थी।

कोहिनूर हीरे का इतिहास
- मूल स्थान:
कोहिनूर का पहला उल्लेख भारत के आंध्र प्रदेश के गॉलकोंडा खदानों से मिलता है (करीब 13वीं-14वीं सदी)। - प्रारंभिक मालिक:
काकतीय वंश के राजा। बाद में यह दिल्ली सल्तनत, बाबर, शाहजहाँ के पास आया। - मुगलों के पास कैसे आया?
बाबर ने 1526 की ‘पानीपत की पहली लड़ाई’ में इब्राहीम लोदी को हराया और कोहिनूर उनके खजाने में आया। बाबर ने इसे अपने संस्मरण ‘बाबरनामा’ में भी दर्ज किया है।
नादिर शाह कौन था?
- जन्म: 1688, ईरान (आज का फारस)।
- पृष्ठभूमि: एक साधारण चरवाहे से शुरू होकर महान सेनापति और फारस (ईरान) का शासक बना।
- महत्व:
फारस का ‘नेपोलियन’ कहा जाता है। उसने अफगानिस्तान, उज़्बेकिस्तान और भारत पर भी आक्रमण किया।
मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ और कोहिनूर की लूट: एक दुखद गाथा
जनवरी 1739, मुग़ल साम्राज्य दुनिया के सबसे अमीर साम्राज्यों में था। दिल्ली के तख़्त-ए-ताऊस पर बैठा बादशाह लगभग पूरे उत्तर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के बड़े हिस्से पर राज कर रहा था।
इस तख़्त पर दुनिया का सबसे मशहूर हीरा, कोहिनूर, चमकता था।
लेकिन बादशाह मोहम्मद शाह ‘रंगीला’, जो सौंदर्य, संगीत और विलासिता के प्रेमी थे, शासन और सेना संचालन में बेहद कमजोर साबित हुए।
उनके शासनकाल में दिल्ली कला और संगीत का केंद्र तो बना, पर सत्ता धीरे-धीरे उनके हाथों से फिसलने लगी। क्षेत्रीय नवाब और सूबेदार (जैसे अवध के सआदत ख़ाँ और दक्षिण के निज़ाम-उल-मुल्क) स्वतंत्र रूप से ताकतवर हो रहे थे।
दिल्ली का कत्लेआम और लूट
- नादिर शाह ने दिल्ली में जबरदस्त कत्लेआम कराया (करीब 20,000 से अधिक लोग मारे गए)।
- मोहम्मद शाह ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।
- नादिर शाह ने तख्त-ए-ताउस (मयूर सिंहासन) समेत भारत की अपार संपत्ति लूटी।
- यहीं से कोहिनूर हीरा भी नादिर शाह के हाथ लगा।
- कोहिनूर को कैसे लिया?
इतिहासकारों के अनुसार, नादिर शाह ने मोहम्मद शाह की पगड़ी में छुपा कोहिनूर हीरा जबरन निकलवाया।
कहा जाता है, नादिर शाह ने ही पहली बार इस हीरे को देखकर कहा था: “कोह-ए-नूर” (रोशनी का पर्वत)
तभी से इसका नाम पड़ा — कोहिनूर।
नादिर शाह और मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ के बीच समझौता: दिल्ली की त्रासदी की शुरुआत
जब नादिर शाह की सेना ने दिल्ली की ओर बढ़ते हुए मुग़ल सेनाओं को घेर लिया और रसद की आपूर्ति ठप कर दी, तो मजबूर होकर मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ को समझौते के लिए बुलाया गया।
माइकल एक्सवर्दी ने अपनी किताब ‘Sword of Persia’ में लिखा है कि नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीला का स्वागत तो धूमधाम से किया, लेकिन उन्हें वापस लौटने की अनुमति नहीं दी। उनके अंगरक्षकों के हथियार ज़ब्त कर लिए गए और चारों ओर नादिर शाह के सैनिक तैनात कर दिए गए। अगले ही दिन नादिर शाह की फौज ने मुग़ल शिविर पर धावा बोलकर, मोहम्मद शाह के पूरे हरम, दरबारी और नौकर-चाकरों को कब्ज़े में ले लिया।
नेतृत्वहीन और भूख से बेहाल मुग़ल सैनिकों को अपने घर लौट जाने का आदेश दे दिया गया।
इस तरह मुग़ल सेना के पास बचा हुआ सारा संसाधन भी नादिर शाह के अधीन आ गया।
मेहदी अशराबादी अपनी पुस्तक ‘Tārīkh-e-Jahān-kushā-e-Nādirī’ में लिखते हैं कि कुछ दिनों बाद जब मोहम्मद शाह रंगीला दिल्ली लौटे तो पूरा शहर वीरान पड़ा था।
फिर 20 मार्च 1739 को नादिर शाह 100 भव्य सजे हाथियों के जुलूस के साथ दिल्ली में दाखिल हुआ और सीधा लाल किला पहुंचा।
वहां उसने दीवान-ए-खास के पास शाहजहाँ द्वारा निर्मित शाही शयनकक्ष को अपना ठिकाना बनाया। मोहम्मद शाह को असद बुर्ज के समीप की एक इमारत में रहने को मजबूर होना पड़ा।
दिल्ली के तमाम ख़जाने — सोना, चांदी, जवाहरात और सबसे कीमती कोहिनूर हीरा — अब नादिर शाह के हाथ में आ गए थे।
मोहम्मद शाह ने सारा शाही ख़ज़ाना औपचारिक रूप से नादिर शाह को सौंप दिया, जिसे नादिर शाह ने ‘शर्माते हुए’ स्वीकार किया।
21 मार्च को बक़रीद के दिन दिल्ली की मस्जिदों में नादिर शाह के नाम से ख़ुतबा पढ़ा गया और टकसाल में उसके नाम के नए सिक्के भी ढाले गए।
यह वही क्षण था जब मुग़ल साम्राज्य का पतन साफ़ दिखाई देने लगा था।

नादिर शाह का भारत पर आक्रमण
फारसी तुर्क सेनापति नादिर शाह, जिसने ईरान में सत्ता संभाली थी, दिल्ली की अपार संपत्ति पर नज़र गड़ाए बैठा था।
कुछ बहानों — जैसे मुग़लों द्वारा कुछ ईरानी विद्रोहियों को शरण देना और ईरानी दूत का अपमान — के बाद नादिर शाह ने भारत पर चढ़ाई कर दी।
करनाल के युद्ध में मुग़ल सेनाएँ बुरी तरह हार गईं और दिल्ली का रास्ता खुल गया।
कोहिनूर की चोरी
दिल्ली की अपार दौलत के साथ, नादिर शाह को तख़्त-ए-ताऊस, कोहिनूर हीरा, और अन्य अनमोल खजाने भी मिले।
एक लोककथा के अनुसार, मोहम्मद शाह ने कोहिनूर अपनी पगड़ी में छुपा रखा था, जिसे नादिर शाह ने चालाकी से ‘भाईचारे’ के नाम पर पगड़ी बदलने के बहाने हासिल कर लिया। (हालांकि कुछ इतिहासकार इस कथा को काल्पनिक मानते हैं।)
नादिर शाह की वापसी और मुग़ल साम्राज्य का पतन
एक महीने दिल्ली में खून-खराबे और लूट के बाद, नादिर शाह भारत से लौट गया — अपने साथ अकूत संपत्ति और कोहिनूर हीरा लेकर।
मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ को दोबारा दिल्ली का बादशाह घोषित तो कर दिया गया, लेकिन साम्राज्य बुरी तरह बिखर चुका था।
इस घटना ने मुग़ल साम्राज्य के गिरते पतन को तेज़ कर दिया, जिससे आगे चलकर अंग्रेजों को भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिला।
नादिर शाह का पतन और कोहिनूर की अगली यात्रा
- 1747 में नादिर शाह की हत्या हो गई (अपने ही अफसरों द्वारा)।
- उसकी मृत्यु के बाद उसका सेनापति अहमद शाह अब्दाली (पश्तून नेता) कोहिनूर समेत अफगानिस्तान ले गया।
- अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कई आक्रमण किए (पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761)।
- बाद में कोहिनूर रंजीत सिंह (पंजाब के महाराजा) के पास पहुंचा।
- अंग्रेजों ने 1849 में पंजाब जीतने के बाद कोहिनूर पर कब्जा कर लिया।
- फिर 1850 में कोहिनूर को इंग्लैंड भेजा गया और इसे ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के मुकुट में जड़ा गया।
- आज भी कोहिनूर ब्रिटेन में है (Crown Jewels में)।
दिल्ली से ईरान तक: तख़्त-ए-ताऊस और कोहिनूर की लूट की कहानी
14 मई का दिन इतिहास में उस पल के तौर पर दर्ज है, जब दिल्ली की रौनक़ लूट कर नादिर शाह ईरान की ओर रवाना हुआ। उसने 57 दिनों तक दिल्ली में मुग़ल सल्तनत की जड़ें हिला दीं और सैकड़ों वर्षों से संजोया गया अकूत ख़ज़ाना अपने साथ ले गया।
ईरान के विख्यात इतिहासकार मोहम्मद काज़ेम मारवी ने अपनी रचना ‘आलमआरा-ए-नादरी’ में उस भीषण लूट का विस्तृत वर्णन किया है। उनके अनुसार, नादिर शाह के हाथ जो सबसे अनमोल चीज़ लगी, वह थी तख़्त-ए-ताऊस — मुग़लों की शान का प्रतीक। इसके अलावा, बेहिसाब सोना, चाँदी और बेशकीमती रत्न भी शामिल थे, जिन्हें 700 हाथियों, 4000 ऊँटों और 12,000 घोड़ों पर लादकर ईरान ले जाया गया।
दिल्ली की गलियों से उठाकर ले जाए गए ख़ज़ाने में विश्वप्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी था, जो बाद में ईरान पहुंचते ही नादिर शाह के मुकुट की शान बना।
रास्ते में जब सेना चिनाब नदी के पुल पर पहुँची, तो लूट का सामान छिपाने को लेकर सख्त निर्देश जारी कर दिए गए। हर सैनिक की तलाशी ली गई ताकि कोई भी ग़बन न कर सके। भय के कारण कई सैनिकों ने अपने पास छिपाया हुआ सोना और बहुमूल्य रत्न चिनाब नदी में फेंक दिए। उन्हें उम्मीद थी कि जब हालात सामान्य होंगे, तो वे वापस लौटकर नदी की तलहटी से इन अनमोल खज़ानों को निकाल सकेंगे।
लेकिन वक़्त के साथ ये सपने भी पानी में बह गए, जैसे इतिहास में कई कहानियाँ गुम हो जाती हैं।
नादिर शाह की यह लूट भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर एक ऐसा घाव बन गई, जिसकी टीस सदियों तक महसूस की गई।

संक्षेप में :
घटना | वर्ष |
---|---|
मोहम्मद शाह का जन्म | 1702 |
मोहम्मद शाह की ताजपोशी | 1719 |
नादिर शाह का जन्म | 1688 |
करनाल की लड़ाई और दिल्ली पर हमला | 1739 |
कोहिनूर नादिर शाह को मिला | 1739 |
नादिर शाह की हत्या | 1747 |
कोहिनूर अहमद शाह अब्दाली के पास | 1747 |
कोहिनूर पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के पास | 19वीं सदी (1800 के आसपास) |
कोहिनूर ब्रिटिश कब्जे में | 1849 |
दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी राजधानी और कोहिनूर की कहानी
18वीं सदी के आरंभ में दिल्ली मुग़ल साम्राज्य की राजधानी थी, जिसकी रौनक और समृद्धि का मुकाबला पूरी दुनिया में शायद ही कोई शहर कर सकता था। इतिहासकारों के अनुसार, उस दौर में दिल्ली की आबादी लगभग 20 लाख के आसपास थी — जो लंदन और पेरिस जैसे यूरोपीय शहरों की संयुक्त आबादी से भी ज्यादा थी। यह शहर कला, संस्कृति, व्यापार और सत्ता का वैश्विक केंद्र बन चुका था।
दिल्ली की इसी समृद्धि ने इसे हमलावरों की नजरों में आकर्षक बना दिया। खासकर ईरान के शासक नादिर शाह के लिए, जो 1739 में अपनी विशाल सेना के साथ दिल्ली पर चढ़ दौड़ा। नादिर शाह ने दिल्ली में भयंकर नरसंहार करवाया और मुग़ल दरबार की अपार संपत्ति को लूट लिया। इसी लूट में शामिल था दुनिया का सबसे प्रसिद्ध हीरा — कोहिनूर।
कोहिनूर की लूट: किताब ‘कोहिनूर: द स्टोरी ऑफ़ द वर्ल्ड्स मोस्ट इनफ़ेमस डायमंड’ के अनुसार
विलियम डैलरिंपल और अनीता आनंद ने अपनी चर्चित किताब ‘Kohinoor: The Story of the World’s Most Infamous Diamond’ में विस्तार से लिखा है कि कोहिनूर हीरा कैसे दिल्ली से निकला। किताब में बताया गया है कि कोहिनूर मुग़लों के खजाने का सबसे अनमोल गहना था, जिसे मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ ने अपने ताज में जड़वाया था।
नादिर शाह ने मोहम्मद शाह से कोहिनूर को पाने के लिए एक चतुर योजना रची। उसने दिल्ली में कत्लेआम के बाद जबरन मुग़ल खजाने पर कब्ज़ा किया और मोहम्मद शाह के ताज और जवाहरात भी हड़प लिए। कहा जाता है कि मोहम्मद शाह के पगड़ी में छुपे इस बेशकीमती हीरे का पता चलने पर नादिर शाह ने उसे अपने कब्जे में लिया।
यहीं से कोहिनूर का सफर दिल्ली से फारस (ईरान) की ओर शुरू हुआ। इतिहास में यह घटना मुग़ल साम्राज्य के पतन का भी एक बड़ा संकेतक बनी।

दिल्ली के पतन की शुरुआत
नादिर शाह की आक्रमण ने दिल्ली की आर्थिक और राजनीतिक रीढ़ तोड़ दी। एक ऐसा शहर जो कभी कला, वास्तुकला और व्यापार में अग्रणी था, लूटपाट और विध्वंस का प्रतीक बन गया। इसके बाद मुग़ल साम्राज्य कभी अपनी पुरानी ताकत वापस नहीं पा सका।
मुख्य बिंदु:
- मोहम्मद शाह रंगीला: सौंदर्य प्रेमी, लेकिन कमजोर प्रशासक
- नादिर शाह: दिल्ली का विध्वंसक
- कोहिनूर हीरा: तख़्त से फारस पहुँच गया
- दिल्ली: खूनी कत्लेआम और भयानक लूट का शिकार