एजेंसियां, नई दिल्ली:
देश में बढ़ती बाल तस्करी की घटनाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कई अहम निर्देश जारी किए। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि किसी अस्पताल से नवजात शिशु चोरी होता है, तो उस अस्पताल का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि किसी महिला के अस्पताल में डिलीवरी के बाद अगर बच्चा गायब हो जाता है, तो पहला कदम अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की घटनाओं को लापरवाही नहीं, गंभीर अपराध माना जाएगा और इसे न्यायालय की अवमानना माना जा सकता है।
6 महीने में हो सुनवाई पूरी:
कोर्ट ने सभी निचली अदालतों को आदेश दिया कि बाल तस्करी से जुड़े मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी की जाए। साथ ही देश के सभी हाईकोर्ट से कहा गया है कि वे बाल तस्करी के लंबित मामलों की रिपोर्ट तैयार करें और ट्रायल कोर्ट को उनका शीघ्र निपटारा करने का निर्देश दें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट पर नाराजगी:
सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले पर भी सुनवाई की जिसमें एक नवजात शिशु को तस्करी कर उत्तर प्रदेश के एक दंपती को सौंपा गया था। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को अग्रिम ज़मानत दिये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई और जमानत रद्द कर दी। साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार को भी मामले की गंभीरता नहीं समझने के लिए चेताया।
विवादित टिप्पणी पर भी जताई आपत्ति:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रेप केस में की गई विवादित टिप्पणी पर भी कड़ी नाराजगी जताई। हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल को एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि “पीड़िता ने खुद मुसीबत बुलायी, वह खुद रेप के लिए जिम्मेदार है।”
जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने कहा कि जमानत पर निर्णय केवल तथ्यों के आधार पर होना चाहिए और पीड़िता के खिलाफ इस तरह की अनावश्यक टिप्पणियों से बचना चाहिए।