पटना: बिहार में शराबबंदी कानून एक बार फिर सियासत के केंद्र में है। इस बार राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने इस कानून के लागू होने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “शराबबंदी का कानून जितनी गहराई तक लागू होना चाहिए था, उतनी गंभीरता से इसे धरातल पर नहीं उतारा गया है।”
कुशवाहा ने कहा कि जब सरकार ने शराबबंदी का फैसला लिया था, तब उसे जमीनी स्तर पर भी पूरी ईमानदारी से लागू करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हम सभी राजनीतिक दलों और समाज के लोगों को सरकार का सहयोग करना चाहिए ताकि यह कानून सही मायनों में सफल हो सके।
तेजस्वी यादव पर निशाना
बयानबाजी के दौरान उपेंद्र कुशवाहा ने तेजस्वी यादव पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा कि, “जब तेजस्वी खुद सरकार में थे, तब उन्होंने शराबबंदी पर कोई आवाज क्यों नहीं उठाई? आज विपक्ष में रहते हुए सवाल खड़े करना केवल राजनीतिक लाभ उठाने जैसा लगता है।”
दलितों के विकास पर भी उठाया सवाल
कुशवाहा ने अपने बयान में यह भी कहा कि आज बिहार में दलित समाज के विकास की बातें केवल कागज़ों तक सीमित रह गई हैं। उन्होंने कहा कि अगर वास्तव में समाज के पिछड़े वर्गों का उत्थान करना है, तो केवल योजनाओं की घोषणा से काम नहीं चलेगा, बल्कि उन्हें सही तरीके से लागू करना होगा।
राजनीति या सामाजिक जिम्मेदारी?
उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर शराबबंदी को चर्चा में ला दिया है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह बयान एक राजनीतिक रणनीति है या वाकई सामाजिक चिंताओं का हिस्सा?
निष्कर्ष:
बिहार में शराबबंदी को लेकर राजनीतिक घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। उपेंद्र कुशवाहा जैसे वरिष्ठ नेता जब इसकी ज़मीनी सच्चाई पर सवाल उठाते हैं, तो यह संकेत है कि इस नीति की समीक्षा और सुधार की सख्त ज़रूरत है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और विपक्ष इस मुद्दे को कितनी दूर तक ले जाता है।